मैँ कल से आज को आगया।
मैं कल की बाहों से निकल कर जब आज के छाओं तले आगया हर गम निराशा और तन्हा सफर खुशी के भीड़ से मेरा परिचय करा गया अब हर शाम के रंग खिल रहे मौसमों के खुशबू बदल रहे उठते गुज़रते ये आसमान से चांद सूरज मिल रहे कर चला में दिल की आज मोह माया से परे मौत से बुरी उसकी ज़िन्दगी जो नई राह पे चलने से डरे चल तो रहा था कल को में ज़िन्दगी क्यों थमी सी थी बंध गया था यादों से आंखों में हरपल नमि सी थी जो आज को मैं हुँ आगया बंधन मैं सारे मिटा गया अपने ही नज़रों के सामने जीता जागता छा गया बढ़ता रहूँ मैं तूफानों में सवालों की रुक गया तो टूट कर बिखर जाएगा कश्ती मैं सपनों की ले चलूँ मेरा किनारा तो आएगा रोको न मुझको आज तुम कहीं ऐसा मौका फिर आए ना अगर आज जो में न चला कहीं वक़्त मुझको भुलाये ना "मैं" की आग बुझ गयी अहंकार जल गया जो कल के गहरे समंदर से मैं आज को बाहर आ गया न अब है रोकती कमी कोई मेरे राज़ दिल से उभरने से है अब इरादा आसमान का ज़मीन पर टिकाये पैरों को मैं क्यों खड़ा। ...