इंसानियत


​मजहब मजहब खेल खेल कर​
राम रहीम को बांट दिया
बुरा भला न देखा,
इंसानियत को छाँट दिया

हम भूल रहे 
न रक्त अलग, न धर्म अलग
दरअसल जो ये दरिंदे हैं
हैवानियत के भक्त अलग

वो खेलते रहे खून की होली
न कुछ किया हम चुप रहे
बोलते रहे आतंक की बोली
हाथ धरे बैठे रहे

मासूम ने क्या बिगाड़ा था?
न देख सके तकलीफें उसकी
अल्लाह कहां था भगवान कहां था
जब गूंज रही थी चीखें उसकी

चादर मैली हो गयी
अब ध्वजा भी नीचे गिर गया
हर इंसान का माथा
अब लाज शर्म से झुक गया


गलती हर उस वक़्त की थी
जब हमने ढीला छोड़ दिया
न्याय के बदले कानून 
अब और भी अंधा हो गया

न जाने कहाँ है खो गई
इंसानियत इंसान की
जिसकी कीमत ये हुई
एक नन्ही सी जान की।


Justice for Asifa
Victim of kathua
Kathua murder case

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