क्षितिज (Horizon)

क्षितिज 

दूर कहीं अनंत में मिल जाते हैं 
आसमान और ज़मीन दायरों को तोड़ कर
एक समस्त ब्रह्मांड को
दूसरा लम्हों को जोड़ कर
चाहे वो डूबता हो या फिर वो हो उगता
सूरज की लालिमा आंखों को वश में कर लेती है
न जाने कैसे प्रश्नों के उत्तर ढूंढने 
अक्सर ये दुनिया उस क्षितिज को निहारती है

एक ख्वाब सा है वो
एक अलग ही अंदाज़ है उसका
किसी कलाकार के चित्र के जैसे
प्रेमिका के मुख के जैसा


देखते ही रहने का मन करता है
उस डूबते आकाश के संग डूबने के मन करता है
सागर की गहराइयों में 
खो जाने का मन करता है


ये कैसी माया है उसकी
जो मोह लेता है आत्मा को
लाल, बैंगनी, नारंगी, पीला
हर रंग ले चलता है सांत्वना को


भूल जाता हूं कभी कभी
मानो दुनिया से परे हूँ मैं
जैसे सारी दुनिया मुझमे बसती है
और उसके दायरे में हूँ मैं 


यूँ ही बैठे हुए मेरे सामने कुछ देखता हूं
जैसे जैसे सूरज क्षितिज में ढलता है
मेरे नज़रों के सामने, सारी परेशानियाँ भूलकर,
प्रकृति के फ़िल्म को चलते हुए देखता हूँ।


इस अनिश्चित जीवन में
एक यही तो निश्चित लगता है
अनंत तक फैला हुआ 
यह क्षितिज ही सुनिश्चित लगता है।
 

                                      ~RV

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