पिता


जब जब दुनिया की बंदिशों ने
मेरे सपनों को जकड़ा था
तब तब आकर आपने 
हर जंजीर को तोड़ा था।

जब हर रहा था कण कण मेरा
ढल रहा था उजाला
तब आये आफताब बन कर
जैसे हौसले का मेला।

पहले कदम से हर कदम तक
साथ रहे बन कर हमदम
उस ऊपर वाले ने दिया हो 
मुझ को जैसे कोई मेहरम

न कमी किसी भी चीज़ की
आपने मुझको होने दी
मेरी ख़्वाईशें पूरी हो
अपने सपनों की कितनी बलि भी दी

हाथ रहे जब ऐसा किसी पर
रोक सके उसे कोई भला
सफलता तो कदमों में होगी
न छू सकेगी कोई बला।

माँ के हमसफ़र बन कर
रास्ते हमें भी दिखाए
जब जब गिरा ठोकरें खा कर
अपने हाथों से उठाए

उस पर्वत को भी चुनौती दे दूँ
पिता के नाम का बजा दूँ डंका
हर तूफान को भी सह लेते
बिना कोई डर या शंका

है भगवान , या नहीं
ये तो मैं ना जानता
लेकिन माता-पिता को मैं
अच्छी तरह पहचानता।
                                   ~RV

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