चेहरे


यूँ ही आते जाते खूबसूरत आवारा रास्तों पर
कितने ही अनजान चेहरे दिख जाते हैं।

कुछ चेहरे अनजान होते हैं,
कुछ अनजान लगते हैं।

कुछ पराये होते हैं,
कुछ पराये लगते हैं।

कुछ अपने होते हैं,
तो कुछ अपने लगते है।

हर चेहरे को देख मन में उत्सुकता सी जाग जाती है
हर चेहरा कोई कहानी ज़रूर सुनाती है।

कोई चेहरे को मुखौटा बना कर 
दर्द छिपाता है,
दुःख छिपाता है
तो कोई चेहरे को दर्पण बना कर
अपनी जीवनी कह जाता है।

कुछ चेहरे ऐसे जैसे मुरझाये झाड़
कुछ ऐसे जैसे फूलों भरा डाल

कुछ चेहरों की लालिमा देख मन फूले नहीं समाता
कुछ चेहरों का रंग मन को ही नहीं भाता

अब तो चेहरे, चेहरे नहीं
बन चुके हैं मुखौटे
सच्चाई ऊपर दिखा कर,
अंदर से है झूठे।

मुखौटे के पीछे ही होता असली चेहरा
कुछ लोग ही रह गए हैं बाकी
जिनका मन अंदर बाहर दोनों तरफ से एक सा ठहरा।

ऐसे ही इत्तेफ़ाक़ से कितने अनजान चेहरे मिल जाते है,
उनमें से कुछ अपने हो जाते है, कुछ सपने हो जाते हैं ।
                                                      ~RV

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