मेरी लिखाई



मेरी लिखाई समंदर नहीँ
ये कश्ती है, पतवार लेकर निकल जाओ
मेरी लिखाई में अंधेरा नहीँ
सवेरा है, सूरज लेकर निकल जाओ

मेरी लिखाई में दर्द नहीँ
दवा है, मरहम लेकर निकल जाओ
मेरी लिखाई तूफान नहीँ
बयार है, सुकून लेकर निकल जाओ

मेरी लिखाई में हड़बड़ी नहीँ
खामोशी है, मन की शांति लेकर निकल जाओ
मेरी लिखाई में मज़हब नहीँ
भाईचारा है, इंसानियत लेकर निकल जाओ

मेरी लिखाई में मोह नहीँ
प्रेम है, स्नेह लेकर निकल जाओ
मेरी लिखाई में ईर्ष्या नहीँ
स्वीकार्यता है , उत्साह लेकर निकल जाओ

जिस दुःख के घेरे में हो
उस दुःख से निकल जाओ
मेरी लिखाई को हमसफर बना कर
कठिन गलियों से निकल जाओ।
                                                      ~RV

Comments

  1. Great brother... Wah superb... Happy writing anniversary bhaiya

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  2. Great poem with amazing message.

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  3. Bhai khotarnaq yarr gote crush upore lekh ,mu bi sunaebi.request from yr fan.

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    1. Browse the blog for such contents bro. I have posted some content related to that. ping me if you still don't find.

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