फाँसी पर लटकते किसान
सूख रहे सब होँठ यहां
बूँद बूँद को तरसने लगे है
धरती फट के चीख रही
पर पेड़ फिर भी कटने लगे हैं
मेरे भाई के घर पर दाना नहीँ
बच्ची भूखी सोने लगी है
छाती पर कर्ज़ का खंजर है
और जमीन बंजर होने लगी है
मौसम जैसे रूठ गया है
उल्टी दिशा में नदियां बहती
ये रोज़ रोज़ की कड़वी हवा
चट्टानों से कम,
इंसानो से ज्यादा है डरती
लाल हो पड़ी है आंखें
रोने तक को आँसू नहीँ
आसमान की ओर है तकते
जल चुके हैं रूह सभी
जिस्म पे दरारे हैं
टूटी हुई मुस्कान
बढ़ रही मीनारें और
ढह रहे हैं मकान
मुरझा रही है धरती मेरी
छाया है मौत का समा
विफल होने को इंसान
अंत का ये इम्तहाँ
सुकून की घड़ी नहीँ
मर रहा है इंसान
फोड़ते है सर चट्टानों से
फाँसी पर लटकते किसान।
बूँद बूँद को तरसने लगे है
धरती फट के चीख रही
पर पेड़ फिर भी कटने लगे हैं
मेरे भाई के घर पर दाना नहीँ
बच्ची भूखी सोने लगी है
छाती पर कर्ज़ का खंजर है
और जमीन बंजर होने लगी है
मौसम जैसे रूठ गया है
उल्टी दिशा में नदियां बहती
ये रोज़ रोज़ की कड़वी हवा
चट्टानों से कम,
इंसानो से ज्यादा है डरती
लाल हो पड़ी है आंखें
रोने तक को आँसू नहीँ
आसमान की ओर है तकते
जल चुके हैं रूह सभी
जिस्म पे दरारे हैं
टूटी हुई मुस्कान
बढ़ रही मीनारें और
ढह रहे हैं मकान
मुरझा रही है धरती मेरी
छाया है मौत का समा
विफल होने को इंसान
अंत का ये इम्तहाँ
सुकून की घड़ी नहीँ
मर रहा है इंसान
फोड़ते है सर चट्टानों से
फाँसी पर लटकते किसान।
~RV
👌 👍 you have highlighted so many instances of farmers
ReplyDeleteI have tried encapsulating whatever I could within this humble collection of words.
DeleteThank you very much for acknowledging.
Just mindblowing👌🙏
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteहमें किसान का सम्मान करना चाहिए और विनम्र होना चाहिए