टेंशन न लो, सब सही होगा।

सन 2016, मार्च का महीना था। बारहवीं के बोर्ड्स शुरू हो गए थे। उस दिन पहला पेपर था। हम सब लोग परीक्षा केंद्र के बाहर 9 बजने का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ लोग एक आखिरी बार किताबें टटोल रहे थे,( जैसे कि उन चंद मिनटों में पूरा पाठ्यक्रम चाट जाएंगे) और कुछ उसी खुशनुमा अंदाज़ में (कि अरे जो होगा देख लेंगे) मार्च के महीने की सुबह वाली धूप का मज़ा लेते हुए अपने साथियों से बातें कर रहे थे। इन्हीं सब के बीच मैं भी शामिल था। लेकिन मेरी कुछ और ही बात थी।


मैं इन सबसे परे कुछ और तलाशे हुए था। मेरी नज़रें उस एक चेहरे को ढूंढ रही थी जिनको मैंने अपना गुड़ लक मान लिया था। अब भई गुड लक वाले चेहरे के दर्शन किए बिना परीक्षा कैसे दे सकते थे। थोड़ी मुश्किल और शिद्दत वाली कोशिश के बाद मुझे वह चेहरा अंततः दिख गया। वह चेहरा जो मुझे ये आश्वासन दे सकता था कि हाँ अब सब कुछ ठीक है। वह खड़ी थी कुछ दूरी पर, अपनी सहेलियों से अलग, एकदम अकेली, हाथों में अपनी किताब लिए। मैंने देखा उसके चेहरे की ओर। उस मासूम चेहरे पर परेशानी छाई हुई थी। एक पेड़ के नीचे कभी किताब को देखती तो कभी किताब से नज़रें उठा कर मन ही मन कुछ बड़बड़ाती। इसी प्रक्रिया में वह एकांत में घबराई हुई आगे पीछे हो रही थी। मैं तो बस उस मासूम चेहरे पर टेंशन को देखते-देखते उसका और भी दीवाना हुआ जा रहा था कि अचानक उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिलीं।


उसके मेरी ओर देखते ही मैंने तुरंत ही अपनी नज़रें घुमा लीं। अब मेरे अंदर पकड़े जाने का डर सा होने लगा। मुझे भी घबराहट होने लगी कि कहीं उसने मुझे उसे निहारते हुए देख तो नहीं लिया। कहीं वह मुझे गलत तो नहीं समझ बैठेगी। इसी कशमकश से मैं परेशान हो ही रहा था कि हिम्मत करके मैंने एक बार फिर देखा कि वह मुझे देख तो नहीं रही। लेकिन भाई साहब मैं यहां ये सब सोच कर परेशान हो रहा था और वह थी कि मुझे अनदेखा करके पाठ दोहराने में व्यस्त थीं। कुछ ही देर में आवाज़ आयी और हमें अंदर बुलाया गया।


हम सब एक कतार में अंदर पहुंचे और अपने-अपने कक्ष की तरफ बढ़ चले। मैं अपने कक्षा में गया और राम का नाम लेकर अपनी जगह पर बैठ गया। तभी मुझे लगा कि इस से पहले की परीक्षा शुरू हो, समय बर्बाद न करने के लिए अभी हल्का हो लिया जाए। मैंने मैडम से अनुमति ली और निकल गया बाहर। मैं गलियारे के रास्ते शौचालय की ओर चल पड़ा। इतने में मैंने देखा की सामने से मेरी गुड लक आ रही थी। मैं थोड़ा उत्सुक हो गया। उसने मुझे सामने से आते हुए देखा और मेरे सामने आकर रुक गयी। फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मानो मेरे भाग ही खुल गए थे। वह खड़ी थी मेरे सामने, बिलकुल मेरे करीब। मेरे तो होश ही उड़े हुए थे। जिस काम के लिए निकला था, उसकी तो अब ज़रूरत ही नहीं महसूस हो रही थी। ऐसा नहीं है कि मेरी कभी बात नहीं हुई, लेकिन यह कुछ अलग ही था। थोड़ी देर के लिए मुझे लगा कि बाहर हुई घटना के बारे में कुछ बोलेगी। लेकिन आँखें कुछ और ही बयान कर रहीं थीं। मैं वहीं खड़ा रहा थोड़ी देर तक और फिर उसने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, "ऋषव, यार बहुत डर लग रहा है"। बस यही सुनना था कि मेरी हालत भी खराब हो गयी। अब तक खुद को सम्हाले हुए था किसी तरह। अरे, परीक्षा का दबाव तो सब पर रहता है, चाहे कितने बड़े दिग्गज हो। लेकिन अब इनको कौन बताये की मेरे भी बारह बजे हुए थे। लेकिन पता नहीं वह कैसा समय था, शायद ये ब्रह्मांड हमारे साथ खड़ा था उस दिन। मैंने अपने अंदर का सारा साहस इकट्ठा कीया और फिर उसका हाथ अपने दोनों हाथों के बीच पकड़ कर उसकी आँखों में देखा और मुस्कुरा कर कहा "टेंशन न लो सब सही होगा"।



इन शब्दों का असर मैंने देखा उसकी आँखों में। सारा डर, सारी घबराहट, सब जैसे यूँ गायब। वह सहमा हुआ चेहरा, परेशानी से मुरझाया हुआ चेहरा, ज़रा सा ही सही, मगर खिल सा गया। धूप से सूखी मिट्टी पर जैसे पहली बारिश की पहली बूंद गिरी हो। एक रोते हुए बच्चे के हाथ में जैसे किसी ने खिलौना थमा दिया हो। और ये जो असर था सिर्फ उसमें ही नहीं मैंने अपने अंदर भी देखा। अब मेरी भी घबराहट थोड़ी कम हो गयी थी। मैंने खुद को भी बड़ा शांत पाया। ऐसा लग रहा था जैसे यह बात मैंने नहीं कही हो किसी और को, बल्कि किसी और ने ये बात मुझे परेशान देख कर कही हो। एक ऐसा व्यक्ति जिस पर मैं भरोसा करता हूँ, जिसको मैं मानता हूँ।


फिर क्या था, वह हल्के से मुस्कुराते हुए कक्षा में गयी, और मैं भी फूले नहीं समा रहा था। अपना काम निबटा कर पेपर खत्म किया। पेपर तो बड़े ही आसानी से खत्म हो गया, मेरा भी और उसका भी, और मेरी खुशी में चार चांद लग गए थे। मैं किसी और ही दुनिया में चला गया था।


ऐसे ही कई सारी परिस्थितियों का सामना हम रोज़ करते हैं। ये जो मन है अपना, बड़ा भोला है। ये घबराता बहुत ही ज्यादा है। इसको कभी-कभी फुसला देना चाहिए ,"अरे पगले, tension न ले, सब सही हो जाएगा"।

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