कलकत्ता
कलकत्ता मुझे तुम्हारी याद दिलाती है। अब कैसे कहूँ कलकत्ते से की तुम अब मेरे साथ नहीँ। मैंने गंगा किनारे Princep घाट पर तुम्हे पाया। तुम्हे हर उस प्रेमिका में पाया जो अपने प्रेमी के बाहों में लिपटी हुई थी। उसके काँधे पर सर रख कर, पूरे संसार का दुख भुला चुकी थी। खुदको दुनिया के सबसे सुरक्षित बाहों में होने का एहसास तुम्ही ने तो बताया था मुझे। कलकत्ते को कैसे बताऊं की मेरी बाहें अब तुम्हारे स्पर्श मात्र को तरसती हैँ?
मैं कलकत्ता की सड़कों से मिला। भारी आवाजाही के बावजूद भी न जाने इतनी सूनी क्यों थीं! तुम्हे मेरे साथ न देख कर कलकत्ते को भी तुम्हारी याद आगयी। उसको भी तुम्हारा मेरी बाहों को जकड़ कर मुझे निहारते हुए चलते देखना अच्छा लगता है।
इतनी रात होने पर भी कलकत्ता अभी सोई नहीँ है। पूछने पर कहती है तुम्हारे बिना अब मन नहीँ लगता। तुम्हे बाहों में भर कर, तुम्हारे माथे पर हल्के से चूम कर और फिर तुम्हारे मासूम से चेहरे को सोता हुआ देख जैसे मैं चैन की नींद सो लेता था, अब कलकत्ते को भी वो नींद नसीब नहीँ।
चिंता न करो, मैंने कलकत्ते से कह दिया है कि निराश न हो, तुम लौट कर जल्द ही आओगी। मेरे लिए न सही, कलकत्ते के लिए ज़रूर आओगी।
~ऋषव
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