सफर
निकल पड़ा हूँ एक सफर पर
लंबी सूनी एक डगर पर
हौसले के झोले में
ज्ञान का भंडार भर कर
आसान नहीँ यह रास्ता
है मुश्किलों से वास्ता
तोड़ने हैं आती मुझको
जाने किसने दे दिया बेचैनियों को मेरा पता
हाँ, भय है मुझे हार जाने का
भय है मुझे समझ न आने का
भय है हज़ारों कि भीड़ में
मुझे कहीँ गुम हो जाने का
दूर क्षितिज पर मंज़िल है
नज़र न आता साहिल है
अनिश्चितता के बीच फॅसा
थोड़ा डरा, थोड़ा सहमा मेरा दिल है
परंतु ×3
डर-डर ,डर-डर, मर-मर, मर-मर
ऐसे भी कोई जीना क्या
तूफानों में कश्ती ले आये
अब खून है क्या! पसीना क्या!
विकल्प नहीँ दूजा कोई
न जीत सिवा मंज़िल कोई
अब हंसने को तैयार है
जो किस्मत थी मेरी रोई
नींदों को मैं पी गया
थकना रुकना भूल गया
घर, त्योहार से रिश्ता नाता
थोड़े समय के लिए टूट गया
हर पहर को मैं गिनवाऊंगा
कष्टों से जूझ मैं जाऊंगा
मेरी बारी आगयी
अब विजय पताका लहराउंगा
फिर सबको मैं बतलाऊंगा
दुनिया को मैं दिखलाऊंगा
लहरें चाहे हों बड़ी
नईया पार तो मैं कर जाऊंगा
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